
निजी विद्यालयों में सरस्वती पूजा की धूम मची है , तरह तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम से छोटे छोटे बच्चे दर्शकों का मनोरंजन करते नजर आये। तो वहीं पटना समेत सूबे के तमाम सरकारी स्कूलें बन्द रहीं और सूनापन नजर आया। विडम्बना ही है कि सरकारें विद्या की देवी के प्रति इतना उदासीन नजर आती है। ये परम्परा कहीं से सही नही कहा जा सकता। ये हमारी संस्कृति, धर्म और विरासत के प्रति कुठाराघात नही तो और क्या है?विद्या की अधिष्ठात्री देवी की पूजा हो और विद्यालय सुना सुना ये तो सांस्कृतिक कुठाराघात ही प्रतीत होता है। छद्म सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म से खिलवाड़ की इजाजत तो भारत का संविधान भी नही देता। सरकारों को इसके बारे में गंभीरता से सोंचना चाहिये। संस्कृति परम्परा और धर्म के रक्षा का दायित्व भी सरकारों पर ही होती है। अपनी संस्कृति को भूलकर कोई भी देश आजतक मूल रूप में जीवित नही रह सका। ये एक दुखद दृश्य और एहसास है।फी के नाम पर हम भले निजी विद्यालयों को कोसते रहे परंन्तु जहाँ तक धर्म,संस्कृति और परंपराओं की बात है उसे जीवित भी निजी विद्यालयों ने ही रखा है।आज सूबे के तमाम निजी विद्यालय जिस धूमधाम से सरस्वती पूजा मना रहे हैं वो ना सिर्फ परंपराओं का निर्वहण मात्र है अपितु बच्चों को भी इससे लगातार अपनी प्रतिभाओं के प्रदर्शन का बेहतर अवसर मिलता है तो वहीं सरकार और सिस्टम को भी आईना दिखाता नजर आता है।
(रिपोर्ट- रवि शंकर शर्मा)
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